क़बूल है
तेरा बात बात पर यूँ रूठना
फिर मासूमियत से माफ़ी माँगना।
क़बूल है
तेरी हर वो बात जो चेहरे पर हँसी लाती है
तेरे सारे नख़रे जो दिल को छु जाते हैं।
क़बूल है
वो शामें जो साथ थीं गुजरीं
वो यादें जो साथ थीं बनीं।
क़बूल है
तन्हाई में तेरा यूँ दूर चले जाना
फिर लौट कर कभी न आना।
मगर कैसे क़बूल करूँ
तेरी बेवफ़ाई, तेरी रुसवाई
तेरा अंदेखपन, तेरा ये रूखापन?
कैसे क़बूल करूँ
की तू किसी और की हो चली
जो मेरे इक पल बात न करने पर तड़प जाती थी?
कैसे क़बूल करूँ
की मैं अब मैं नहीं रहा
तेरे धोखे, तेरे झूठे वादे सह कर?
क़बूल है
तेरा मुझसे दूर जाना
हाँ, मुझे क़बूल है।
-Deep
awesome 😍😍😍
ReplyDeleteNice..������
ReplyDeleteकैसे क़बूल करूँ
की तू किसी और की हो चली
जो मेरे इक पल बात न करने पर तड़प जाती थी?
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