व्यथा

"अरे! तुम समझना क्यों नहीं चाहते ये दुनिया ऐसे ही चलती है। तुम दहेज़ नहीं दोगे तो तुम्हारे लड़के के लिए कोई क्यों देगा? 4-4 लड़कियों के बाप हो अक्ल नहीं आई तुम्हें अब तक। ये तो रिवाज़ है न। लड़का भले ही कैसा भी हो कर दो लड़की की शादी। पागल इंसान, कोई ध्यान नहीं देता। हाँ, मोहल्ले की कुछ औरतें जरूर काना-फूसी करेंगी कि लड़की को कम दिया। लेकिन तुम चिन्ता मत करो यार, लड़का है न तुम्हारा। बढ़िया दाम लगाना उसके। अरे इतना पढ़ाया-लिखाया है उसे कम से कम 50 लाख तो मिलेंगे ही।"
हाँ! बात आई न समझ में। लोग ऐसा ही कुछ सुझाव दिया करते हैं और लड़की की फिक्र में तड़पता बाप चुप-चाप सुनता रहता है। परिवार वालों के, रिश्तेदारों के ताने सुनता रहता है। कोई लेकिन ये भी नहीं चाहता की उसे एक बार ये बोल सके कि "चिन्ता क्यों करते हो? लड़की अपना भाग्य खुद लिखेगी। देख लेना।"
उस बाप की व्यथा तो नहीं समझेगा कोई लेकिन हाँ कुरेद कुरेद कर बातें जरूर करेंगे लोग ऐसी की शाम को जब भी वो थक कर घर आये तो चेहरे पर एक फीकी हँसी और आँखों में मायूसी के अलावा और कुछ नज़र नहीं आता।
लड़की की शादी की उम्र निकल गयी तो क्या होगा? कौन करेगा उससे शादी? यही कुछ सवालों में घिरा बेचारा वो दो घूँट पी ले तो बीवी के ताने आते हैं की लड़कियों की कोई चिंता नहीं है बस पीने से मतलब रह गया है।
नहीं मैं समाज को दोष थोड़े न दे रहा हूँ। समाज की समझ वैसे ही काफी खोखली है भाई। उसे समझाने बैठूंगा तो लोग मुझे ही समझाने लगेंगे। मैं तो बस एक बाप की व्यथा बता रहा हूँ उसके लड़के की नज़र से।
                          -Deepanshu Yadav

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